तेरी खुशबु की खुमारी न पा सके
तेरे एहसास का सुरूर न भुला सकेतुझसे क्या गिला, क्या शिकायत करें
हम तो अपने ही दिल को आशिक़ी न सिखा सके
तेरी नज़रों में खुद को न उठा सके
तेरी मोहब्बत में खुदी
न मिटा सकेतुझसे वस्ल की उम्मीद करने की कैसे हिमाक़त हो
हम तो खुद को तेरे काबिल ही न बना सके
तुझे अपनी चाहत की गहराई
न दिखा सके
तुझे अपने दिल की तमन्ना
न बना सकेतेरे किस सितम पे तुझसे हमें रक़ाबत हो
हम तो अपने आप से ही रिश्ता न निभा सके
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