Wednesday, December 5, 2012


तेरी खुशबु की खुमारी न पा सके
तेरे एहसास का सुरूर न भुला सके
तुझसे क्या गिला, क्या शिकायत करें
हम तो अपने ही दिल को आशिक़ी न सिखा सके

तेरी नज़रों में खुद को न उठा सके
तेरी मोहब्बत में खुदी न मिटा सके
तुझसे वस्ल की उम्मीद करने की कैसे हिमाक़त हो
हम तो खुद को तेरे काबिल ही न बना सके

तुझे अपनी चाहत की गहराई न दिखा सके
तुझे अपने दिल की तमन्ना न बना सके
तेरे किस सितम पे तुझसे हमें रक़ाबत हो
हम तो अपने आप से ही रिश्ता न निभा सके

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